क्या आपको पता है इस ब्रम्हांड का निर्माण कैसे हुआ?
आप चौक जाएंगे यह जानते हुए कि मबोम्बो (Mbombo) नाम की देवता ने उल्टी की जिससे इस ब्रम्हांड का निर्माण हुआ ।
सेन्ट्रल अफ्रीका में कूबा नामक एक जनजाति है, वहाँ पर चली आ रही कहानियों के मुताबिक इस ब्रह्मांड के निर्मित होने से पहले इस दुनिया में सिर्फ अंधकार और पानी था । इस अंधकार और पानी में महाकाय राक्षस रहते थे । इन राक्षसों के अलावा उस वक्त इस दुनिया में सिर्फ एक ही देवता थी, जिसका नाम था मबोम्बो (Mbombo) । एक दिन इस देवता के पेट में अचानक से दर्द होने लगा और उसने उल्टी कर दी इस से सूरज, चांद और तारों का निर्माण हुआ । सूरज ने पानी को भाप में रूपांतरित किया और उससे बादल बनें, बादलों से बारिश हुई और जमीन का निर्माण हुआ । देवता को कुछ दिनों के लिए अच्छा महसूस हुआ पर जल्दी ही देवता फिर से एक बार बीमार हुई । देवता के पेट में फिर से दर्द होने लगा और देवता ने उल्टी कर दी, इससे जानवर, पेड़ पौधे, पंछी और मनुष्य का निर्माण हुआ ।
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यह तो हुई एक पौराणिक अफ्रीकन कथा । इस तरह की अलग-अलग कथाएँ हर धर्म में मौजूद है । पिछले कुछ वर्षों में हुए वैज्ञानिक तरक्की के बाद हम इन कथाओं से बहुत आगे आ चुके हैं । इस ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ हर दिन बेहतर होती जा रही है । फिर भी इस ब्रह्मांड को देखते हुए वैज्ञानिकों को वर्षों से कुछ सवाल सता रहे थे, जैसे कि यह यूनिवर्स किन चीजों से बना हुआ है? किस तरह के रॉ मटेरियल से यह यूनिवर्स बना हुआ है? इस यूनिवर्स के बिल्डिंग ब्लॉक्स क्या है? पिछले कुछ वर्षों में जो शोध हुआ, उसके कुछ नतीजे हमारे सामने हैं, हम उन पर थोड़ा गौर करेंगे ।
इस यूनिवर्स का लगभग ७० प्रतिशत हिस्सा डार्क एनर्जी से बना हुआ है । अलग-अलग आकाशगंगाओं के बीच की सारी जगह इस डार्क एनर्जी से भरी हुई है । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन अलग-अलग आकाशगंगाओं के बीच की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है और यह दूरी बढ़ने का वेग प्रकाश के वेग से भी ज्यादा है तथा इन आकाशगंगाओं के बीच का फासला डार्क एनर्जी से भरा है । यूनिवर्स का सबसे बड़ा हिस्सा इस डार्क एनर्जी से भरा हुआ है ।
इसके बाद यूनिवर्स का लगभग २६ प्रतिशत हिस्सा डार्क मैटर से बना हुआ है । यह डार्क मैटर आँखों से दिखाई नहीं देता । यह एक तरह की एनर्जी है जिसने अलग अलग आकाशगंगाओ को पकड़ कर रखा है । डार्क मैटर की तुलना हम समझने के लिए गुरुत्वाकर्षण से कर सकते हैं ।
अब बचा हुआ ४ प्रतिशत मैटर से बना हुआ है । इस ४ प्रतिशत हिस्से में से ९९.९९ हिस्सा इंस्टनटेलर डस्ट से बना हुआ है । इस इंस्टनटेलर डस्ट का ज्यादातर हिस्सा हाइड्रोजन और हीलियम से बना हुआ है ।
इस यूनिवर्स का बचा हुआ ०.१ प्रतिशत हिस्सा हमारी आँखों को दिखाई देता है । इस ०.१ प्रतिशत हिस्से में पूरा ब्रह्मांड सम्मिलित है । इस ०.१ प्रतिशत हिस्से में २ ट्रिलियन से ज्यादा गैलेक्सी है, ७०६ ट्रिलियन से ज्यादा तारे हैं । यह हमारी आँखों को दिखाई देता है इसीलिए हम इसे मैटर कहते हैं, यह मैटर भी बना है तरंगों से । यानी जो हमारी आँखों को दिखता है, जिसे हम छू सकते हैं, वे सारी चीजें तरंगों से बनी हुई है ।
हमारी आँखों को दिखाई देने वाली हर ठोस चीज मॉलिक्यूल्स् या अणुओं से बनती है । हर अणु उससे और छोटे एटम्स या परमाणुओं से बने होते हैं । जिस कुर्सी पर हम बैठते हैं, वह कुर्सी उपरी तौर पर ठोस दिखाई देती है, पर वह ठोस होती नहीं है । वह इतने छोटे एटम्स् या परमाणुओं बनी होती है कि बिना माइक्रोस्कोप के हम उन्हें देख भी नहीं पाएंगे । आगे विज्ञान कहता है कि यह परमाणु, सबअटॉमिक पार्टिकल्स से बने होते हैं । और यह सबअटॉमिक पार्टिकल्स ठोस नहीं होते, यह तरंगों से बने होते हैं । संक्षेप में, जो कुर्सी हमें ठोस दिखाई देती है, असल में वह ऊर्जा या एनर्जी से बनी होती है ।
तो अब सवाल यह है कि अगर सारी ठोस चीजें एनर्जी से बनी हुई है तो हमें वह एनर्जी दिखाई क्यों नहीं देती?
विज्ञान कहता है कि सबअटॉमिक पार्टिकल्स जिस एनर्जी से बने हुए हैं, वह एनर्जी इतनी गतिशील है कि हमें वह ठोस प्रतीत होती है । यह उसी तरह से होता है जिस तरह से हमें थिएटर में मूवी दिखाई जाती हैं । मूवी के अलग-अलग फ्रेम्स् को इतनी तेजी से घुमाया जाता है कि इवेंट एक के बाद एक घट रहे हैं, इस तरह का आभास निर्मित होता है । इस तरह से सबअटॉमिक पार्टिकल्स भी इतनी तेजी से घूम रहे हैं कि चीजों के ठोस होने का आभास निर्मित हो रहा है ।
अब तक हम ने जो पढ़ा उसे आधारभूत मानकर यूनिवर्स के संदर्भ में दो निष्कर्ष निकाल सकते हैं ।
१. यूनिवर्स कोई ठोस चीज नहीं है, सिर्फ ठोस होने का आभास निर्मित हो रहा है ।
२. यूनिवर्स (गैलेक्सीज के बीच का फासला) हर वक्त बढ़ रहा है ।
तो फिर यह यूनिवर्स बना किससे है?
आज की हमारी जो वैज्ञानिक समझ है, उसके बूते हम इतना कह सकते हैं, “यूनिवर्स ऊर्जा और सूचना का प्रवाह है”, और जब हम मन के बारे में सोच रहे थे तब हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचे थे “मन भी ऊर्जा और सूचना का प्रवाह है” ।
तो क्या यूनिवर्स और मन दोनों की परिभाषा एक ही है? इस बारे में अगले ब्लॉग में चर्चा करेंगे ।
आशा करता हूँ कि यह ब्लॉग आपको अच्छा लगा होगा, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें । चलो तो फिर मिलते हैं अगले ब्लॉग में, तब तक के लिए …
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